गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

अभावों में ही संवारता है व्यक्तित्व


जीवन संवारने के लिए संसाधनों की नहीं संस्कारों की आवश्यकता होती है। कई
बार लोग यह सोच लेते हैं कि जिसके पास संसाधनों का अभाव है वह व्यक्ति
कभी सफलता पूर्वक अपनी संतानों का पालन पोषण नहीं कर सकता। महाभारत की
कुंती इस बात के लिए श्रेष्ठ उदाहरण है कि अभावों में भी
संतानों को
श्रेष्ठ इंसान बनाया जा सकता है। व्यक्तित्व विकास के लिए अभाव में जीने
की आदत होना भी जरूरी है।
हर सुख, सारी सुविधा और दुनियाभर का वैभव हर एक ही दिली तमन्ना हो गई है।
एक चीज का अभाव भी बर्दाश्त नहीं है, थोड़ी सी असफलता हमें तोड़ देती है।
लेकिन इसके बाद भी जो नहीं मिल रहा है, वो है आनंद। दरअसल यह आनंद सबकुछ
पा लेने में नहीं है। कभी-कभी अभाव में जीना भी आनंद देने लगता है। अगर
आपके भीतर कोई अभाव है तो उसे सद्गुणों से भरने का प्रयास करें,
महत्वाकांक्षाओं को हावी न होने दें। मन चाहा मिल जाए इसके लिए तेजी से
दौड़ रही है दुनिया। न मिलने का विचार तो लोगों को भीतर तक हिला देता है।
संतों ने बार-बार कहा है जो है उसका उपयोग करो तथा जो नहीं है उसे
सोच-सोच कर तनाव में मत आओ। हम जो नहीं है उसे हानि मानकर जो है उसका भी
लाभ नहीं उठा पाते हैं। आज अभाव की बात की जाए। संतों के पास यह कला होती
है कि वे अभाव का भी आनंद उठा लेते हैं।
हमारे लिए दो उदाहरण काफी है। श्रीराम वनवास में पूरी तरह से अभाव में
थे। जिनका कल राजतिलक होने वाला था उन्हें चौदह वर्ष वनवास जाना पड़ा।
इधर रावण के पास ऐसी सत्ता थी जिसे देख देवता भी नतमस्तक थे। एक के पास
सबकुछ था फिर भी वह हार गया और दूसरे ने पूर्ण अभाव में भी दुनिया जीत
ली। अभाव हमें संघर्ष के लिए प्रेरित करे, कुछ पाने के लिए प्रोत्साहित
करे यहां तक तो ठीक है परन्तु हम अभाव में बेचैन हो जाते हैं और परेशान,
तनाव ग्रस्त मन लेकर कुछ पाने के लिए दौड़ पड़ते हैं तब क्रोध, हिंसा,
भ्रष्ट आचरण हमारे भीतर कब उतार जाते हैं पता ही नहीं चल पाता है।इसे एक
और दृष्टि से देख सकते हैं। रावण में भक्ति का अभाव था बाकी सब कुछ था
उसके पास। कई लोगों के साथ ऐसा होता है। आदमी अपने अन्दर के अभाव को भरने
की कोशिश भी करता है। रावण ने भक्ति के अभाव को अपने अहंकार से भरा था,
आज भी कई लोग अपने अभाव को अपनी महत्वाकांक्षा विकृतियों, दुर्गुणों से
भरने लगते हैं। जिन्हें भक्ति करना हो वे समझ लें पहली बात अभाव का आनंद
उठाना सीखें और अभाव को भरने के लिए लक्ष्य, उद्देश्य पवित्र रखें।