आपके मित्र, सहयोगी और हितैषी सदैव इसी प्रकार आपके हितकारी बने रहें इसके लिए मीठी वाणी की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। श्रीराम ने शबरी को चारू भाषिणी कहा था। शबरी वही पात्र थी जिसे श्रीराम ने भक्ति के नौ स्वरूप का उपदेश दिया था। आज भी कई लोग व्यक्तित्व परखने के लिए वाणी को माध्यम बनाते हैं।
किसी व्यक्ति से थोड़ी देर बातचीत करिए तो उसकी वाणी से पता लग सकता है कि वह किस आचरण का है। लेकिन ध्यान रखें इसी वाणी का लोगों ने दुरुपयोग भी किया है। यह आवरण ओढ़े जाने का समय है और लोगों ने वाणी का भी आवरण ओढ़ लिया है। कम योग्य व्यक्ति अच्छा बोलकर अपने दुर्गुण छुपा लेते हैं।
इसी तरह जिन्हें बोलने की कला नहीं आती ऐसे योग्य भी कभी-कभी प्रस्तुति के अभाव में अपनी योग्यता साबित नहीं कर पाते। अध्यात्म में इस बात का महत्व है कि आप जो हैं वे वैसे ही व्यक्त हो जाएँ। मीठी वाणी का अर्थ केवल बोल-बोल करते रहना ही नहीं है मौन भी इसमें शामिल है। बातचीत की कला न आने के कारण दुनिया की आधी से अधिक योग्यता सामने नहीं आ पाई है। आप अपनी योग्यता से परिश्रम करते हैं लेकिन यदि उस परिश्रम का लाभ नहीं उठा पाते तो यह आपकी गलती है और इसमें वाणी की भी भूमिका है। शब्दों का उपयोग करना न आए ऐसे व्यक्ति संकोची हो जाते हैं और संकोच को हमेशा शालीनता नहीं माना जा सकता। इसलिए कहा गया है एक समय था सोचकर बोलने का, फिर वक्त आया तौल-मोलकर बोलने का और अध्यात्म कहता है छानकर बोलिये। असंतुलित वाणी आनन्द के अवसरों को खो देती है। मीठी वाणी का एक रूप है जरा मुस्कुराइये..
किसी व्यक्ति से थोड़ी देर बातचीत करिए तो उसकी वाणी से पता लग सकता है कि वह किस आचरण का है। लेकिन ध्यान रखें इसी वाणी का लोगों ने दुरुपयोग भी किया है। यह आवरण ओढ़े जाने का समय है और लोगों ने वाणी का भी आवरण ओढ़ लिया है। कम योग्य व्यक्ति अच्छा बोलकर अपने दुर्गुण छुपा लेते हैं।
इसी तरह जिन्हें बोलने की कला नहीं आती ऐसे योग्य भी कभी-कभी प्रस्तुति के अभाव में अपनी योग्यता साबित नहीं कर पाते। अध्यात्म में इस बात का महत्व है कि आप जो हैं वे वैसे ही व्यक्त हो जाएँ। मीठी वाणी का अर्थ केवल बोल-बोल करते रहना ही नहीं है मौन भी इसमें शामिल है। बातचीत की कला न आने के कारण दुनिया की आधी से अधिक योग्यता सामने नहीं आ पाई है। आप अपनी योग्यता से परिश्रम करते हैं लेकिन यदि उस परिश्रम का लाभ नहीं उठा पाते तो यह आपकी गलती है और इसमें वाणी की भी भूमिका है। शब्दों का उपयोग करना न आए ऐसे व्यक्ति संकोची हो जाते हैं और संकोच को हमेशा शालीनता नहीं माना जा सकता। इसलिए कहा गया है एक समय था सोचकर बोलने का, फिर वक्त आया तौल-मोलकर बोलने का और अध्यात्म कहता है छानकर बोलिये। असंतुलित वाणी आनन्द के अवसरों को खो देती है। मीठी वाणी का एक रूप है जरा मुस्कुराइये..