..................."आर्थिक आज़ादी का अभियान" ........................ उदेश्य- स्वास्थ्य सुरक्षा, नए भारत का निर्माण, स्वावलंबन
रविवार, 27 फ़रवरी 2011
jay jay rcm
उठ कर तो देख जमीन से तू ,
बाहे फैलाए इंतज़ार में तेरे दुनिया खड़ी है ,
मत हो मायूस अभी तू ,बहुत आगे जाना है ,
फक्र करे तुझ पे ज़माना,
कुछ ऐसा कर दिखाना है ..
बाहे फैलाए इंतज़ार में तेरे दुनिया खड़ी है ,
मत हो मायूस अभी तू ,बहुत आगे जाना है ,
फक्र करे तुझ पे ज़माना,
कुछ ऐसा कर दिखाना है ..
तरक्की चाहिए तो खुद को बदलो
हमारे समाज में पुराने ढररे पर चलना आज भी अनेक मामलों में सही माना जाता है चाहे वह शादी हो या कोई प्रथा इन बातों पर आज भी हमारा समाज रूढि़वादियों से घिरा है। लेकिन ये जरूरी नहीं कि उस का वह नियम या कायदा समय के अनुसार हो इसलिए हमें समय के साथ अपने आप को बदल लेना चाहिए
गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ा एक पंसग यही संदेश देता है। बुद्ध उस समय वैशाली में थे वे नित्य धर्मोपदेश देते थे और उनके शिष्य भी उनके उपदेशों का प्रचार करते एक दिन उनके शिष्यों का समूह यही काम कर रहा था कि रास्ते में उन्हें भूख से तड़पता हुआ आदमी दिखाई दिया उनके एक शिष्य ने कहा कि तुम भगवान बुद्ध की शरण में आआ और उनके उनके उपदेश सुनो तुमको शांति मिलेगी भिखारी भूख के मारे उठ नहीं पा रहा था जब महात्मा बुद्ध को इस बारे में पता चला तो वे उसी समय उस भिखारी से मिलने आए और उसे भरपेट खाना खिलाया फिर अपने शिष्य से बोले कि इस वक्त भरपेट खाना ही इसकी जरुरत है और उपदेश भी क्योंकि भूखे आदमी को धर्म समझ नहीं आएगा। हमें समय को ध्यान में रखकर ही सारा काम करना चाहिए।
गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ा एक पंसग यही संदेश देता है। बुद्ध उस समय वैशाली में थे वे नित्य धर्मोपदेश देते थे और उनके शिष्य भी उनके उपदेशों का प्रचार करते एक दिन उनके शिष्यों का समूह यही काम कर रहा था कि रास्ते में उन्हें भूख से तड़पता हुआ आदमी दिखाई दिया उनके एक शिष्य ने कहा कि तुम भगवान बुद्ध की शरण में आआ और उनके उनके उपदेश सुनो तुमको शांति मिलेगी भिखारी भूख के मारे उठ नहीं पा रहा था जब महात्मा बुद्ध को इस बारे में पता चला तो वे उसी समय उस भिखारी से मिलने आए और उसे भरपेट खाना खिलाया फिर अपने शिष्य से बोले कि इस वक्त भरपेट खाना ही इसकी जरुरत है और उपदेश भी क्योंकि भूखे आदमी को धर्म समझ नहीं आएगा। हमें समय को ध्यान में रखकर ही सारा काम करना चाहिए।
शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011
वाणी बता देती है आपका आचरण, मीठा बोलिए…
आपके मित्र, सहयोगी और हितैषी सदैव इसी प्रकार आपके हितकारी बने रहें इसके लिए मीठी वाणी की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। श्रीराम ने शबरी को चारू भाषिणी कहा था। शबरी वही पात्र थी जिसे श्रीराम ने भक्ति के नौ स्वरूप का उपदेश दिया था। आज भी कई लोग व्यक्तित्व परखने के लिए वाणी को माध्यम बनाते हैं।
किसी व्यक्ति से थोड़ी देर बातचीत करिए तो उसकी वाणी से पता लग सकता है कि वह किस आचरण का है। लेकिन ध्यान रखें इसी वाणी का लोगों ने दुरुपयोग भी किया है। यह आवरण ओढ़े जाने का समय है और लोगों ने वाणी का भी आवरण ओढ़ लिया है। कम योग्य व्यक्ति अच्छा बोलकर अपने दुर्गुण छुपा लेते हैं।
इसी तरह जिन्हें बोलने की कला नहीं आती ऐसे योग्य भी कभी-कभी प्रस्तुति के अभाव में अपनी योग्यता साबित नहीं कर पाते। अध्यात्म में इस बात का महत्व है कि आप जो हैं वे वैसे ही व्यक्त हो जाएँ। मीठी वाणी का अर्थ केवल बोल-बोल करते रहना ही नहीं है मौन भी इसमें शामिल है। बातचीत की कला न आने के कारण दुनिया की आधी से अधिक योग्यता सामने नहीं आ पाई है। आप अपनी योग्यता से परिश्रम करते हैं लेकिन यदि उस परिश्रम का लाभ नहीं उठा पाते तो यह आपकी गलती है और इसमें वाणी की भी भूमिका है। शब्दों का उपयोग करना न आए ऐसे व्यक्ति संकोची हो जाते हैं और संकोच को हमेशा शालीनता नहीं माना जा सकता। इसलिए कहा गया है एक समय था सोचकर बोलने का, फिर वक्त आया तौल-मोलकर बोलने का और अध्यात्म कहता है छानकर बोलिये। असंतुलित वाणी आनन्द के अवसरों को खो देती है। मीठी वाणी का एक रूप है जरा मुस्कुराइये..
किसी व्यक्ति से थोड़ी देर बातचीत करिए तो उसकी वाणी से पता लग सकता है कि वह किस आचरण का है। लेकिन ध्यान रखें इसी वाणी का लोगों ने दुरुपयोग भी किया है। यह आवरण ओढ़े जाने का समय है और लोगों ने वाणी का भी आवरण ओढ़ लिया है। कम योग्य व्यक्ति अच्छा बोलकर अपने दुर्गुण छुपा लेते हैं।
इसी तरह जिन्हें बोलने की कला नहीं आती ऐसे योग्य भी कभी-कभी प्रस्तुति के अभाव में अपनी योग्यता साबित नहीं कर पाते। अध्यात्म में इस बात का महत्व है कि आप जो हैं वे वैसे ही व्यक्त हो जाएँ। मीठी वाणी का अर्थ केवल बोल-बोल करते रहना ही नहीं है मौन भी इसमें शामिल है। बातचीत की कला न आने के कारण दुनिया की आधी से अधिक योग्यता सामने नहीं आ पाई है। आप अपनी योग्यता से परिश्रम करते हैं लेकिन यदि उस परिश्रम का लाभ नहीं उठा पाते तो यह आपकी गलती है और इसमें वाणी की भी भूमिका है। शब्दों का उपयोग करना न आए ऐसे व्यक्ति संकोची हो जाते हैं और संकोच को हमेशा शालीनता नहीं माना जा सकता। इसलिए कहा गया है एक समय था सोचकर बोलने का, फिर वक्त आया तौल-मोलकर बोलने का और अध्यात्म कहता है छानकर बोलिये। असंतुलित वाणी आनन्द के अवसरों को खो देती है। मीठी वाणी का एक रूप है जरा मुस्कुराइये..
ताली कब और क्यों बजाते हैं?
सामान्यत: हम किसी भी मंदिर में आरती के समय सभी को ताली बजाते देखते हैं और हम खुद भी ताली बजाना शुरू कर देते हैं। ऐसे कई मौके होते हैं जहां ताली बजाई जाती है। किसी समारोह में, स्कूल में, घर में आदि स्थानों पर जब भी कोई खुशी और उत्साह वाली बात होती है हम उसका ताली बजाकर अभिवादन करते हैं लेकिन ताली बजाते क्यों हैं?
काफी पुराने समय से ही ताली बजाने का प्रचलन है। भगवान की स्तुति, भक्ति, आरती आदि धर्म-कर्म के समय ताली बजाई जाती है। ताली बजाना एक व्यायाम ही है, ताली बजाने से हमारे पूरे शरीर में खिंचाव होता है, शरीर की मांसपेशियां एक्टिव हो जाती है। जोर-जोर से ताली बजाने से कुछ ही देर में पसीना आना शुरू हो जाता है और पूरे शरीर में एक उत्तेजना पैदा हो जाती है। हमारी हथेलियों में शरीर के अन्य अंगों की नसों के बिंदू होते हैं, जिन्हें एक्यूप्रेशर पाइंट कहते हैं। ताली बजाने से इन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है और संबंधित अंगों में रक्त संचार बढ़ता है। जिससे वे बेहतर काम करने लगते हैं। एक्यूप्रेशर पद्धति में ताली बजाना बहुत अधिक लाभदायक माना गया है। इन्हीं कारणों से ताली बजाना हमारे स्वास्थ्य के बहुत लाभदायक है।
काफी पुराने समय से ही ताली बजाने का प्रचलन है। भगवान की स्तुति, भक्ति, आरती आदि धर्म-कर्म के समय ताली बजाई जाती है। ताली बजाना एक व्यायाम ही है, ताली बजाने से हमारे पूरे शरीर में खिंचाव होता है, शरीर की मांसपेशियां एक्टिव हो जाती है। जोर-जोर से ताली बजाने से कुछ ही देर में पसीना आना शुरू हो जाता है और पूरे शरीर में एक उत्तेजना पैदा हो जाती है। हमारी हथेलियों में शरीर के अन्य अंगों की नसों के बिंदू होते हैं, जिन्हें एक्यूप्रेशर पाइंट कहते हैं। ताली बजाने से इन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है और संबंधित अंगों में रक्त संचार बढ़ता है। जिससे वे बेहतर काम करने लगते हैं। एक्यूप्रेशर पद्धति में ताली बजाना बहुत अधिक लाभदायक माना गया है। इन्हीं कारणों से ताली बजाना हमारे स्वास्थ्य के बहुत लाभदायक है।
लगातार सफलता के लिए अपनाएं ये सूत्र
हर इंसान की ताकत जो नहीं है, उसको पाने और जो पा लिया, उसे बचाने की कवायद में खर्च हो जाती है। सफलता पाने और उसे कायम रखने पर भी यही बात लागू होती है। सफलता के लिए व्यक्ति जद्दोजहद करता है और जब कामयाबी की मंजिल को छू लेता है, तो वहां पर बने रहने का संघर्ष शुरू हो जाता है।
सवाल यही बनता है कि व्यक्ति ऐसा क्या करे कि ताकत और कामयाबी दोनों ही कायम रहे? हिन्दू धर्म शास्त्रों में इनका जवाब बेहतर तरीके से ढूंढा जा सकता है। जिनमें आए कुछ प्रसंग साफ करते हैं कि ताकत और सफलता को संभाल पाना आसान नहीं है, किंतु असंभव भी नहीं।
शास्त्रों में बताए कुछ अधर्मी चरित्र जिनमें रावण से लेकर कंस और दुर्योधन से लेकर शिशुपाल के जीवन चरित्र बताते हैं कि शक्ति, सफलता और तमाम सुखों को पाने के बाद दूसरों को कमतर समझने से पैदा दंभ या अहं उनके अंत का कारण बना।
इन चरित्रों से यही सूत्र मिलते है कि सफल होकर या शक्ति पाने पर उसके हर्ष या मद में इतना न डूब जाएं कि उससे पैदा हुआ अहं आपको आगे बढ़ाने के बजाए पीछे धकेल दे या कामयाबी का सफर रोक दे। इसलिए अगर लगातार सफलता की चाहत है तो इसके लिए सबसे जरूरी है कि कामयाबी मिलने पर सरल, विनम्र और शांत रहें। अहंकारी या घमण्डी न बने, बल्कि हितपूर्ति की भावना को दूर रख उससे दूसरों को भी मदद और राहत देने की भावना से आगे बढ़ें। कामयाब होने पर भी अपने दोष या कमियों पर ध्यान दें और दूर करें।
यह बातें सफलता को पाने के बाद भी आपको मन और व्यवहार दोनों तरह से संतुलित और शांत रखेगी। जिससे आप पूरी तरह से एकाग्र, स्थिर, सजग, योजना और सहयोग के साथ सफलता के सिलसिले को जारी रख पाएंगे।
सवाल यही बनता है कि व्यक्ति ऐसा क्या करे कि ताकत और कामयाबी दोनों ही कायम रहे? हिन्दू धर्म शास्त्रों में इनका जवाब बेहतर तरीके से ढूंढा जा सकता है। जिनमें आए कुछ प्रसंग साफ करते हैं कि ताकत और सफलता को संभाल पाना आसान नहीं है, किंतु असंभव भी नहीं।
शास्त्रों में बताए कुछ अधर्मी चरित्र जिनमें रावण से लेकर कंस और दुर्योधन से लेकर शिशुपाल के जीवन चरित्र बताते हैं कि शक्ति, सफलता और तमाम सुखों को पाने के बाद दूसरों को कमतर समझने से पैदा दंभ या अहं उनके अंत का कारण बना।
इन चरित्रों से यही सूत्र मिलते है कि सफल होकर या शक्ति पाने पर उसके हर्ष या मद में इतना न डूब जाएं कि उससे पैदा हुआ अहं आपको आगे बढ़ाने के बजाए पीछे धकेल दे या कामयाबी का सफर रोक दे। इसलिए अगर लगातार सफलता की चाहत है तो इसके लिए सबसे जरूरी है कि कामयाबी मिलने पर सरल, विनम्र और शांत रहें। अहंकारी या घमण्डी न बने, बल्कि हितपूर्ति की भावना को दूर रख उससे दूसरों को भी मदद और राहत देने की भावना से आगे बढ़ें। कामयाब होने पर भी अपने दोष या कमियों पर ध्यान दें और दूर करें।
यह बातें सफलता को पाने के बाद भी आपको मन और व्यवहार दोनों तरह से संतुलित और शांत रखेगी। जिससे आप पूरी तरह से एकाग्र, स्थिर, सजग, योजना और सहयोग के साथ सफलता के सिलसिले को जारी रख पाएंगे।
लक्ष्य पाना है तो दूसरी बातों पर ध्यान न दें
हर किसी के जीवन में अपना एक लक्ष्य होता है। कुछ लोग लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं जबकि कुछ लोग इधर-उधर की बातों पर ध्यान देकर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। ऐसा लोगों की संख्या अधिक है जो अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाते। चूंकि वे अपने लक्ष्य को देखते तो हैं लेकिन उसके आस-पास जो भी होता है उसे पर भी ध्यान देते हैं। जबकि जो लोग लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं उन्हें हर समय सिर्फ अपना लक्ष्य ही दिखाई देता है और वे कठिन प्रयास कर आखिरकार अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं। कौरवों व पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य ने एक बार अपने शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने एक नकली गिद्ध एक वृक्ष पर टांग दिया। उसके बाद उन्होंने सभी राजकुमारों से कहा कि तुम्हे बाण से इस गिद्ध के सिर पर निशान लगाना है। पहले द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बुलाया और निशाना लगाने के लिए कहा। फिर उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है। युधिष्ठिर ने कहा मुझे वह गिद्ध, पेड़ व मेरे भाई आदि सबकुछ दिखाई दे रहा है। यह सुनकर द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को निशाना नहीं लगाने दिया। इसके बाद उन्होंने दुर्योधन आदि राजकुमारों से भी वही प्रश्न पूछा और सभी ने वही उत्तर दिया जो युधिष्ठिर ने दिया था।
सबसे अंत में द्रोणाचार्य ने अर्जुन को गिद्ध का निशाना लगाने के लिए कहा और उससे पूछा कि तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है। तब अर्जुन ने कहा कि मुझे गिद्ध के अतिरिक्त कुछ और दिखाई नहीं दे रहा है। यह सुनकर द्रोणाचार्य काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने अर्जुन को बाण चलाने के लिए। अर्जुन ने तत्काल बाण चलाकर उस नकली गिद्ध का सिर काट गिराया। यह देखकर द्रोणाचार्य बहुत प्रसन्न हुए।
सबसे अंत में द्रोणाचार्य ने अर्जुन को गिद्ध का निशाना लगाने के लिए कहा और उससे पूछा कि तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है। तब अर्जुन ने कहा कि मुझे गिद्ध के अतिरिक्त कुछ और दिखाई नहीं दे रहा है। यह सुनकर द्रोणाचार्य काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने अर्जुन को बाण चलाने के लिए। अर्जुन ने तत्काल बाण चलाकर उस नकली गिद्ध का सिर काट गिराया। यह देखकर द्रोणाचार्य बहुत प्रसन्न हुए।
गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011
अभावों में ही संवारता है व्यक्तित्व
जीवन संवारने के लिए संसाधनों की नहीं संस्कारों की आवश्यकता होती है। कई
बार लोग यह सोच लेते हैं कि जिसके पास संसाधनों का अभाव है वह व्यक्ति
कभी सफलता पूर्वक अपनी संतानों का पालन पोषण नहीं कर सकता। महाभारत की
कुंती इस बात के लिए श्रेष्ठ उदाहरण है कि अभावों में भी संतानों को
श्रेष्ठ इंसान बनाया जा सकता है। व्यक्तित्व विकास के लिए अभाव में जीने
की आदत होना भी जरूरी है।
हर सुख, सारी सुविधा और दुनियाभर का वैभव हर एक ही दिली तमन्ना हो गई है।
एक चीज का अभाव भी बर्दाश्त नहीं है, थोड़ी सी असफलता हमें तोड़ देती है।
लेकिन इसके बाद भी जो नहीं मिल रहा है, वो है आनंद। दरअसल यह आनंद सबकुछ
पा लेने में नहीं है। कभी-कभी अभाव में जीना भी आनंद देने लगता है। अगर
आपके भीतर कोई अभाव है तो उसे सद्गुणों से भरने का प्रयास करें,
महत्वाकांक्षाओं को हावी न होने दें। मन चाहा मिल जाए इसके लिए तेजी से
दौड़ रही है दुनिया। न मिलने का विचार तो लोगों को भीतर तक हिला देता है।
संतों ने बार-बार कहा है जो है उसका उपयोग करो तथा जो नहीं है उसे
सोच-सोच कर तनाव में मत आओ। हम जो नहीं है उसे हानि मानकर जो है उसका भी
लाभ नहीं उठा पाते हैं। आज अभाव की बात की जाए। संतों के पास यह कला होती
है कि वे अभाव का भी आनंद उठा लेते हैं।
हमारे लिए दो उदाहरण काफी है। श्रीराम वनवास में पूरी तरह से अभाव में
थे। जिनका कल राजतिलक होने वाला था उन्हें चौदह वर्ष वनवास जाना पड़ा।
इधर रावण के पास ऐसी सत्ता थी जिसे देख देवता भी नतमस्तक थे। एक के पास
सबकुछ था फिर भी वह हार गया और दूसरे ने पूर्ण अभाव में भी दुनिया जीत
ली। अभाव हमें संघर्ष के लिए प्रेरित करे, कुछ पाने के लिए प्रोत्साहित
करे यहां तक तो ठीक है परन्तु हम अभाव में बेचैन हो जाते हैं और परेशान,
तनाव ग्रस्त मन लेकर कुछ पाने के लिए दौड़ पड़ते हैं तब क्रोध, हिंसा,
भ्रष्ट आचरण हमारे भीतर कब उतार जाते हैं पता ही नहीं चल पाता है।इसे एक
और दृष्टि से देख सकते हैं। रावण में भक्ति का अभाव था बाकी सब कुछ था
उसके पास। कई लोगों के साथ ऐसा होता है। आदमी अपने अन्दर के अभाव को भरने
की कोशिश भी करता है। रावण ने भक्ति के अभाव को अपने अहंकार से भरा था,
आज भी कई लोग अपने अभाव को अपनी महत्वाकांक्षा विकृतियों, दुर्गुणों से
भरने लगते हैं। जिन्हें भक्ति करना हो वे समझ लें पहली बात अभाव का आनंद
उठाना सीखें और अभाव को भरने के लिए लक्ष्य, उद्देश्य पवित्र रखें।
किसी को मान देना हो तो उसे अपना सान्निध्य दें
यदि आप किसी को पुरस्कार, प्रशंसा और मान देना चाहें तो एक तरीका है, आप
उसे अपना सान्निध्य दें। ‘निकटता’ देना भी एक पुरस्कार है। ज्येष्ठ और
श्रेष्ठ लोग जब किसी को अपना सान्निध्य देते हैं तो एक तरह से उसे
पुरस्कृत ही करते हैं और पुरस्कृत व्यक्ति ‘सान्निध्य-ऊर्जा’ से भर जाता
है।
इसे अंग्रेजी में एनर्जी ऑफ प्रॉक्सिमिटी कहा गया है। श्री हनुमानचालीसा
की बारहवीं चौपाई में तुलसीदासजी ने व्यक्त किया है-रघुपति कीन्ही बहुत
बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। हे हनुमानजी! आपकी प्रशंसा स्वयं
श्रीराम ने की है, उन्होंने आपको भरत के समान ही प्रिय बताया है।
श्रीराम ने हनुमानजी को मान देते हुए उनकी तुलना अपने प्रियतम भाई भरत से
की है। स्नेह और सम्मान देने की यह श्रीराम की मौलिक शैली है। किष्किंधा
कांड में जब हनुमानजी से पहली बार श्रीराम मिले थे, तब उन्होंने हनुमानजी
को देखकर कहा था- ‘तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना..’ वहां लक्ष्मण से दुगुना
कहा था और यहां कह रहे हैं भरत के समान प्रिय हो। यह उच्चतम सम्मान देने
की भावना है। संत जब किसी की प्रशंसा करते हैं तो उसके सौभाग्य में
वृद्धि हो जाती है।
श्रीराम, हनुमानजी की तुलना भरत और लक्ष्मण से करके उन्हें सौभाग्यशाली
बना रहे हैं। नेपोलियन का कथन था- मेरे सेनापति बहादुर हों यह तो अच्छा
है ही, उससे ज्यादा अच्छा यह होगा कि वे भाग्यशाली जरूर हों। यह सत्य है
कि अपने अधीनस्थ का सौभाग्य भी सफलता में सहायक और दुर्भाग्य भी बाधक
होता है।
बुधवार, 23 फ़रवरी 2011
सोमवार, 21 फ़रवरी 2011
वार्षिक समारोह 2011 - एक झलक
जय RCM
RCM का वार्षिक महाकुम्भ 20 फ़रवरी 2011को जबर्दस्त उत्साह , आनन्द के साथ RCM वर्ल्ड , भीलवाडा में आयोजित हुवा |
देश के विभिन्न स्थानों से RCM के देस्त्रिबुतर्स इकठे हुवे |
कार्यक्रम में जहा जगह मिली लोग वहा पर बेठ गए ,
एक और कार्यक्रम के दोरान बहुत सी अव्यवस्थाए नजर आई ,
वही दूसरी तरफ कई लोग व्यवस्था बनाने में सहयोग कर रहे थे , जो की प्रशंसा के योग्य हे |
कार्यक्रम में T .C . जी के द्वारा जब RCM के गानों पर अपनी आवाज में सुर निकाले तो लोग नाचने लगे ,वही T . C . जी भी लोगो के प्यार को देख कर जूम उठे |
RCM के ऑफिस के स्टाफ द्वारा राजस्थानी गाने पर सुन्दर नर्त्य की प्रस्तुति की|
इसी क्रम में जब उड़ीसा से पूजा अरोड़ा की टीम के द्वारा RCM सोंग "जय जय RCM " की प्रस्तुति हुयी तो माहोल देश भक्ति और RCM के प्यार में सराबोर हो गया
कर्यक्रम में सुरुआत में अत्रे जी ने अपनी बात कही और साथ ही स्वर्गीय सतीश जी पंडित को इस मोके पर याद किया गया और फिर मुकेश जी कोठारी ने स्टार पिन से लेकर स्टार एमराल्ड तक के पिन अचीवर्स को आमंत्रित कर सम्मान बढाया |
मंच पर जब स्वर्गीय सतीश जी पंडित की पत्नी मिलन पंडित ने जब अपनी बात कही "कर भला तो हो भला " , तो सभी लोगो को अपने भविष्य के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया की RCM के द्वारा हम अपने परिवार को बहुत कुछ दे सकते हे |
सुरेन्द्र जी वत्स ने अपनी बात कही और उन्होंने रूबी , और स्टार रूबी को सम्मान दिलाया , फिर सफायर , स्टार सफायर का सम्मान हुवा |
B . C . जी छाबड़ा जी ने जब लोगो से कहा "RCM का साथ हे तो फिर डरने की क्या बात हे " तो लोगो ने फिर से कुछ बन कर अपने भाग्य को बदलने का प्रण दिलाया |
K . C . जी छाबड़ा ने नए प्रोडक्ट की बात कही की पूरी रात हो जाएगी बताते हुवे लिस्ट बहुत लम्बी हे , , इसलिए जो प्रोडक्ट नहीं आयेंगे उसकी बात करे , और वो हे तम्बाखू उत्पाद , बन्दुक , गोली - बारूद |
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बहुत मजा लिया,
T . C . छाबड़ा जी ने इस बात पर चुटकी लेते हुवे कहा की मजा आता नहीं हे मजा तो लिया जाता हे ,
और आज इस कार्यक्रम में सभी ने बहुत मजा लिया
बहुत आनन्द आया
जय RCM
जय TC . जी
एक नया युग निर्माण , एक नव भारत का निर्माण
शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
काँच की बरनी और दो कप चाय
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है ।
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ..... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
Amit Namdev
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ..... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
Amit Namdev
अब समझ मै आया आर सी ऍम बिज़नस
अब समझ मै आया आर सी ऍम बिज़नस
दोस्त ये मै कोई कहानी नही बल्कि हकीकत बयाँ कर रहा हूँ
जरा गौर करना कि आर सी ऍम बिज़नस क्या है?
मैने जाना आर सी ऍम बिज़नस व्यापार नही है क्यों कि
जम्मू कश्मीर में हिमालय कि चोटी पर बैठ कर व्यापार नही होता
में 7 जुलाई से 11 जुलाई तक वहां था
क्रषि प्रधान प्रदेश पंजाब रात के 10 बजे किसी के ड्राइंग रूम में
बिज़नस नही किया जाता मगर में 5-6 जुलाई को जालंदर ,कपूरथला व पठानकोट
में मै ये काम कर रहा था
मैने 3,4 व 12 जुलाई को इण्डिया गेट पर अमर जवान ज्योति को सलाम किया
तथा कोमन वेल्थ गेम्स कि तैयारी मे देश की राजधानी दिल्ली को सजते
देखा!
13,14व 15 को माधव राव सिंधिया के नगर ग्वालियर ,झाँसी कि रानी का
किला झाँसी मे, झीलों कि नगरी भोपाल तथा साँची स्तूप व खजुराहो का विश्व
विख्यात मंदिर देखते हुए आगे बढ़ा
17-18 जुलाई को नवाबों कि नगरी हैदराबाद कि तंग गलियों तथा हाई टेक
सिटी एवं साइबर सिटी के माध्यम से दुनिया को बदलते देखा
19 जुलाई को दुनिया के सबसे अमीर मंदिर (श्री बालाजी) तिरुपति के
दर्शन करते हुए 20 जुलाई को श्री राजीव गाँधी के अंतिम उधोगिक शहर
कोयम्बतूर मे अपना पड़ाव पूरा करते हुए 22-25 जुलाई क्षत्रियों के सबसे
बड़े गुरु श्री परशुराम के द्वारा बनाई गयी धरती केरल मे
त्रिशुर,एर्नाकुलम,अल्पुजा और तिरुवंतपुरम का आनंद ले रहा था
जबकि 26-27 जुलाई को लंड्स एंड (धरती समाप्त) तमिलनाडु स्टेट के
कन्याकुमारी सिटी के समुंदर बिच पर अठखेलिया करते समुंदर मे नहाते हुए मै
सोच रहा था कि क्या मै कोई व्यापार कर रहा हूँ ?
तब मुझे पता चला नही मै आर सी ऍम बिज़नस कर रहा हूँ जिसका मतलब है
R रोज
C करो
M मोज
दोस्त इसलिए आर सी ऍम बिज़नस व्यापार नही है जिन्दगी जीने का एक नया
अंदाज़ है
एक बार अपने जेहन मे बिठा लेना की ये व्यापार नही है ये एक संपूरण
जिन्दगी है फिर आपको आपकी जिन्दगी बनाने से कोई भी नही रोक पायेगा
धन्यवाद
एक बार जोर से बोलो जय आर सी ऍम
इंडियन आर्मी का एक जवान
हिंदुस्तान कि आर्थिक आज़ादी का एक सिपाही
आर सी ऍम का एन सेवक
चहल
दोस्त ये मै कोई कहानी नही बल्कि हकीकत बयाँ कर रहा हूँ
जरा गौर करना कि आर सी ऍम बिज़नस क्या है?
मैने जाना आर सी ऍम बिज़नस व्यापार नही है क्यों कि
जम्मू कश्मीर में हिमालय कि चोटी पर बैठ कर व्यापार नही होता
में 7 जुलाई से 11 जुलाई तक वहां था
क्रषि प्रधान प्रदेश पंजाब रात के 10 बजे किसी के ड्राइंग रूम में
बिज़नस नही किया जाता मगर में 5-6 जुलाई को जालंदर ,कपूरथला व पठानकोट
में मै ये काम कर रहा था
मैने 3,4 व 12 जुलाई को इण्डिया गेट पर अमर जवान ज्योति को सलाम किया
तथा कोमन वेल्थ गेम्स कि तैयारी मे देश की राजधानी दिल्ली को सजते
देखा!
13,14व 15 को माधव राव सिंधिया के नगर ग्वालियर ,झाँसी कि रानी का
किला झाँसी मे, झीलों कि नगरी भोपाल तथा साँची स्तूप व खजुराहो का विश्व
विख्यात मंदिर देखते हुए आगे बढ़ा
17-18 जुलाई को नवाबों कि नगरी हैदराबाद कि तंग गलियों तथा हाई टेक
सिटी एवं साइबर सिटी के माध्यम से दुनिया को बदलते देखा
19 जुलाई को दुनिया के सबसे अमीर मंदिर (श्री बालाजी) तिरुपति के
दर्शन करते हुए 20 जुलाई को श्री राजीव गाँधी के अंतिम उधोगिक शहर
कोयम्बतूर मे अपना पड़ाव पूरा करते हुए 22-25 जुलाई क्षत्रियों के सबसे
बड़े गुरु श्री परशुराम के द्वारा बनाई गयी धरती केरल मे
त्रिशुर,एर्नाकुलम,अल्पुजा और तिरुवंतपुरम का आनंद ले रहा था
जबकि 26-27 जुलाई को लंड्स एंड (धरती समाप्त) तमिलनाडु स्टेट के
कन्याकुमारी सिटी के समुंदर बिच पर अठखेलिया करते समुंदर मे नहाते हुए मै
सोच रहा था कि क्या मै कोई व्यापार कर रहा हूँ ?
तब मुझे पता चला नही मै आर सी ऍम बिज़नस कर रहा हूँ जिसका मतलब है
R रोज
C करो
M मोज
दोस्त इसलिए आर सी ऍम बिज़नस व्यापार नही है जिन्दगी जीने का एक नया
अंदाज़ है
एक बार अपने जेहन मे बिठा लेना की ये व्यापार नही है ये एक संपूरण
जिन्दगी है फिर आपको आपकी जिन्दगी बनाने से कोई भी नही रोक पायेगा
धन्यवाद
एक बार जोर से बोलो जय आर सी ऍम
इंडियन आर्मी का एक जवान
हिंदुस्तान कि आर्थिक आज़ादी का एक सिपाही
आर सी ऍम का एन सेवक
चहल
एक सुनहरे भारत की यह छोटी सी झांकी है
एक सुनहरे भारत की यह छोटी सी झांकी है
अभी जमीं में नीव भरी है ऊपर शीश महल तो बनना
बाकी है
आर सी ऍम के सागर में छिपा अनमोल खजाना है
अभी तो 2 -4 बुँदे बरसी है सागर का बरसना बाकी
है
आर सी ऍम है ऐसा वृक्ष जो दिव्या फलों से लदा हुआ
अब तक तो अंकुर फूटा है वो वृक्ष तो बनना बाकी
है
आर सी ऍम है विराट शक्ति युग परिवर्तन कर देती जो ,
अब तक तो अंगडाई ली है जग कर उठ
जाना बाकी है
इस मार्ग पर चलने वाले हर ऊँचाई को छू सकते है
अभी मार्ग ऊँचा नीचा है समतल होना तो बाकी है
इसकी सफलता को अचंभित होकर क्यों देखते हो
अभी तो आधार बना है शुरू होना तो बाकी है
इसके संग चलकर हर जन निहाल हो सकता है
लाखों के समझ में आया है करोडो को समझाना बाकी है
अब तलवारों की धार लगा लो इरादों को मजबूत बना लो
अब तक तो अभ्यास हुआ है अभी लडाई बाकी है
एक सुनहरे भारत की यह छोटी सी झांकी है
अभी जमीं में नीव भरी है ऊपर शीश महल तो बनना बाकी
है
एक सुनहरे भारत की यह - - - - - - -
(श्री टी सी छाबरा जी के अन्तस की आवाज)
अभी जमीं में नीव भरी है ऊपर शीश महल तो बनना
बाकी है
आर सी ऍम के सागर में छिपा अनमोल खजाना है
अभी तो 2 -4 बुँदे बरसी है सागर का बरसना बाकी
है
आर सी ऍम है ऐसा वृक्ष जो दिव्या फलों से लदा हुआ
अब तक तो अंकुर फूटा है वो वृक्ष तो बनना बाकी
है
आर सी ऍम है विराट शक्ति युग परिवर्तन कर देती जो ,
अब तक तो अंगडाई ली है जग कर उठ
जाना बाकी है
इस मार्ग पर चलने वाले हर ऊँचाई को छू सकते है
अभी मार्ग ऊँचा नीचा है समतल होना तो बाकी है
इसकी सफलता को अचंभित होकर क्यों देखते हो
अभी तो आधार बना है शुरू होना तो बाकी है
इसके संग चलकर हर जन निहाल हो सकता है
लाखों के समझ में आया है करोडो को समझाना बाकी है
अब तलवारों की धार लगा लो इरादों को मजबूत बना लो
अब तक तो अभ्यास हुआ है अभी लडाई बाकी है
एक सुनहरे भारत की यह छोटी सी झांकी है
अभी जमीं में नीव भरी है ऊपर शीश महल तो बनना बाकी
है
एक सुनहरे भारत की यह - - - - - - -
(श्री टी सी छाबरा जी के अन्तस की आवाज)
JAY RCM
चल चलें उस ओर, जहाँ सपने करें साकार हम
और अपने कुछ पलों का कर सकें विस्तार हम
विविध भाषा और वाणी को करें स्वीकार हम
नेक बन सबके हृदय में कर सकें विहार हम
एक पग और एक पग पग- पग कठिन है रास्ता
पर एक दीपक को जला चलते रहें दिन रात हम
प्रियजनों से दूर भी होना पड़े तो क्या हुआ
पहुँच कर मंजिल पे उनको भी तो लेंगे साथ हम
हाँ हमें आशीष और संगत मिले तू नेक बन
दूरजन भी प्रियजन बनकर चलेंगे हर कदम
हर समय हम ध्यान कर बलिदान कर आगे बढे
एक दिल को दुसरे से जोड़ने का प्रन करें
और उनके ही दिलों पर छाप अपनी छोड़ दें
इस तरह पल पल समय का मोल लें स्वीकार हम
और अपना हर समय करते रहें विस्तार हम
JAY RCM
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011
सफलता का सम्मान
नेहाजी & दिलीप जी बारेगामा
मंजिलें उन्ही को मिलती हैं
जिनके सपनों में जान होती है,
सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता दोस्तो
हौसलों से उडान होती है ।
सोमवार, 14 फ़रवरी 2011
RCM का असली सच क्या हे ?
RCM का असली सच .
RCM क्या हे ?
RCM अध्यात्म के अक्स में इंसानियत का इन्द्रधनुस हे
RCM सोहार्द के सितार पर सद्भाव का संगीत हे
RCM प्यार की पेदी पर परमात्मा की प्राथना हे
RCM अपनत्व के आँगन में आत्मीयता का अभिनन्दन हे
RCM विकृति के बाजार में संस्कृति का शंखनाद हे
RCM सोहार्द के सितार पर सद्भाव का संगीत हे
RCM प्यार की पेदी पर परमात्मा की प्राथना हे
RCM अपनत्व के आँगन में आत्मीयता का अभिनन्दन हे
RCM विकृति के बाजार में संस्कृति का शंखनाद हे
RCM सत्रुता के शूल नहीं चुभाता
RCM कलह के कांटे नहीं उगाता
RCM वासनाओ के पतासे नहीं बाटता
RCM सद्यन्त्र के यन्त्र नहीं बेचता
RCM कलह के कांटे नहीं उगाता
RCM वासनाओ के पतासे नहीं बाटता
RCM सद्यन्त्र के यन्त्र नहीं बेचता
RCM सफलता का बिज देता हे
RCM सफलता का मूलमंत्र देता हे
RCM सफलता का मूलमंत्र देता हे
जिस प्रकार गंगा पाप का नास करती हे
कल्प वृक्ष अभिशाप का नास करता हे
चन्द्रमा ताप का नास करता हे
कल्प वृक्ष अभिशाप का नास करता हे
चन्द्रमा ताप का नास करता हे
उसी प्रकार RCM जिसकी जिन्दगी में आ जाता हे
रग-रग नाड़ी-नाड़ी में समां जाता हे
वह व्यक्ति पाप,ताप,और अभिशाप तीनो से मुक्त हो जाता
पूरी बात का सार हे की
देखो तो ख्वाब हे RCM
पढो तो किताब हे RCM
सुनो तो ज्ञान हे RCM
एक बात पक्के वादे और दावे के साथ कह सकते हे की
पढो तो किताब हे RCM
सुनो तो ज्ञान हे RCM
एक बात पक्के वादे और दावे के साथ कह सकते हे की
हमेसा हमेसा मुस्कुराने का नाम हे RCM
रविवार, 13 फ़रवरी 2011
रोज दिखाए RCM का प्लान
कोई भी काम, चाहे वह व्यायाम हो या पूजा, तभी सार्थक है जब उसे नियम से किया जाये। एक दिन सब कर लेना और दूसरे दिन कुछ न करने से कोई लाभ नहीं मिल सकता। शुरुआत करते समय अपने सामर्थ्य से कम का लक्ष्य रखें और उसे धीरे-धीरे बढ़ायें। यदि आप दो माला जप कर सकते हैं तो एक माला का लक्ष्य रखें, 50 पेज पाठ कर सकते हैं तो बीस पेज का लक्ष्य रखें, एक घंटा चल सकते हैं तो आधे घंटे का लक्ष्य रखें।
RCM का प्लान रोज दिखाए ,रोज 10 लोगो को नहीं दिखा पाए तो कोए बात नहीं 2 को जरुर दिखाए
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
विफल व्यक्ति
अक्षम व्यक्ति उस डूबते के समान है जो अपनी हर विफलता के लिए किसी दूसरे के कंधे की तलाश करता है. वह विफल होता ही इसलिए है कि उसे पता है कि उसमें सफल होने के गुण नहीं
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
सेवा
हे ईश्वर ! मै जब तक जियूं तेरे चरणों में रहूँ .........
वरदान दे मुझको के तेरे मानव रूप की सदा सेवा मै करूँ |
हमारी दृष्टि
स्थापित रूप से बुरे व्यक्ति को भी कुछ लोग पसंद करते हैं. वहीँ, स्थापित रूप से भले व्यक्ति की आलोचना करने वाले भी कम नहीं होते. यह केवल हमारी दृष्टि है जो भला और बुरा देखती है.
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011
मेरी इच्छा
हे ईश्वर! मुझे ऐसा रजकण बना दो, जो कभी हवा के साथ उड़े और आवश्यकता पड़ने पर पर्वत बन, हवा की दिशा बदल दे.
मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011
सफलता का राज
जिजीविषा सीखनी है तो वृक्ष से सीखिए. आप जहाँ से उसे काटते हैं वहीँ से एक की जगह चार टहनी उग जाती हैं. जब आपको कोई रोके या मना करे तो हतोत्साहित होने की बजाय दोगुनी शक्ति से आगे बढ़िये.
RCM बिज़नस का 10 वा वार्षिक समारोह आने वाली 20 फ़रवरी 2011 को भीलवाडा , राजस्थान
जय RCM ,
आने वाली 20 फ़रवरी 2011 को भीलवाडा , राजस्थान में हमारी इस मिशन यानि की RCM बिज़नस का 10 वा वार्षिक समारोह भव्य रूप से मनाया जायेगा , जो की अब तक के इतिहास में अभूतपूर्व आयोजन बनेगा | 20 फ़रवरी का दिन इतिहास में विशेष रूप से याद रखा जायेगा क्युकी इस तारीख के बाद RCM और तेजी से आगे बढेगा |
आने वाली 20 फ़रवरी 2011 को भीलवाडा , राजस्थान में हमारी इस मिशन यानि की RCM बिज़नस का 10 वा वार्षिक समारोह भव्य रूप से मनाया जायेगा , जो की अब तक के इतिहास में अभूतपूर्व आयोजन बनेगा | 20 फ़रवरी का दिन इतिहास में विशेष रूप से याद रखा जायेगा क्युकी इस तारीख के बाद RCM और तेजी से आगे बढेगा |
सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
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